मेरी पसंद के भजन - 3

बोलो ओम नम: शिवाय...


बोलो ओम नम: शिवाय, बोलो ओम नम: शिवाय ।।

जय शिव शंकर, जय गंगाधर, करूणा-कर करतार हरे
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुख-रा‍शी, सुख-सार हरे ।
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर, जय जय प्रेमागार हरे
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे ।
निर्गुण जय-जय, सगुण अनामय, निराकार-साकार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो, पाहि-पाहि दातार हरे ।।1।।

जय रामेश्वर, जय नागेश्वर, वैद्यनाथ, केदार हरे
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय, महाकाल ओंकार हरे ।
त्र्यम्ब्केश्वर, जय धुश्मेश्वर, भीमेश्वर जगतार हरे
काशी-पति श्री विश्वनाथ जय, मंगलमय अघहार हरे ।
नीलकण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृंत्युंजय अविकार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो, पाहि-पाहि दातार हरे ।।2।।

जय महेश जय-जय भवेश, जय आदि-देव महादेव विभो
किस मुख से हे गुरातीत प्रभु, तव अपार गुण वर्णन हो ।
जय भव-कारक, तारक हारक, पातक दारक शिव शंभो
दीन-दु:ख-हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाधर दया करो ।
पार लगा दो भव सागर से, बनकर कर्णाधार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो, पाहि-पाहि दातार हरे ।।3।।

जय मन-भावन, जय अति-पावन, शोक नसावन शिव शम्भो
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन शिव शम्भो ।
सहज वचन हर, जलज नयन-वर, धवन वरन तन शिव शम्भो‍
मदन-कदन कर, पाप-हरन हर, चरन मनन धन शिव शम्भो ।
विवसन विश्व रूप प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो , पाहि-पाहि दातार हरे ।।4।।

भोलानाथ कृपालु दयामय, औढर-दानी शिव योगी
सरल हृदय अति करूणा सागर, अकथ कहानी शिव योगी ।
निमिष में ही दे देते हैं नवनिधि मनमानी शिव योगी
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव योगी ।
स्वयं अकिंचन, जन-मन-रंजन, पर शिव परम उदार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो, पाहि-पाहि दातार हरे ।।5।।

आशुतोष इस मोह-मयी निद्रा से मुझे जगा देना
विषय वेदना से विषयों की, मायाधीश छुड़ा देना ।
रूप सुधा की एक बूंद से, जीवन मुक्त बना देना
दिव्य ज्ञान भंडार युगल चरणों की लगन लगा देना ।
एक बार इस मन मंदिर में, कीजे पद संचार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो, पाहि-पाहि दातार हरे ।।6।।

दानी हो, दो भिक्षा में अपनी अनपायनी भक्ति प्रभो
शक्तिमान हो, दो अविचल निष्काम प्रेम की शक्ति प्रभो ।
त्यागी हो, दो इस असार-संसार से पूर्ण विरक्ति प्रभो
परमपिता हो, दो तुम अपने चरणों में अनुरक्ति प्रभो ।
स्वामी हो, निज सेवक की, सुन लेना करूण पुकार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो, पाहि-पाहि दातार हरे ।।7।।

तुम बिन 'बेकल' हूँ प्राणेश्वर, आ जाओ भगवन्त हरे
चरण शरण की बाँह गहो हे, उमारमण प्रियकन्त हरे ।
विरह व्यथित हूँ, दीन दुखी हूँ, दीन दयालु अनन्त हरे
आओ तुम मेरे हो जाओ, आ जाओ श्रीमंत हरे ।
मेरी इस दयनीय दशा पर, कुछ तो करेा विचार हरे
पार्वती-पति हर-हर शम्भो , पाहि-पाहि दातार हरे ।।8।।

।। इति श्री शिवाष्टक स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

मीठे रस सों भर्योड़ी राधाराणी लागै...


मीठे रस सों भर्योड़ी राधाराणी लागै, महाराणी लागै ।
म्हानै खारो खारो जमुनाजी रो पाणी लागै ।।

जमुनाजी तो कारी कारी, राधा गोरी गोरी
बिंदराबन में धूम मचावै, बरसानै की छोरी ।
ब्रज धाम राधाजू की रजधानी लागै ।।1।।

कान्हा नित मुरली मैं टेरै सुमिरै बारम्बार
कोटिन रूप धरै नंदनंदन तऊ न पावै पार ।
रूप रंग की छबीली पटराणी लागै ।।2।।

ना भावै म्हानै माखन मिसरी ना कोई और मिठाई
म्हारै तो जीवडि़या भावै राधा नाम मलाई ।
वृषभानु की लली तो गुड़ धाणी लागै ।।3।।

राधा राधा नाम रटत हैं जो नर आठों याम
तिनकी हर बाधा हर लेवै इक राधा को नाम ।
राधा नाम सैं सफल जिन्‍दगाणी लागै ।।4।।


कन्हैया तुझे इक नजर देखना है ...


कन्हैया तुझे इक नजर देखना है ।
जिधर तुम छुपे हो, उधर देखना है ।।

अगर तुम्हीं दीनों की आहों के आशिक ।
तो आहों की अपनी असर देखना है ।।1।।

उबारा था जिस हाथ ने गीध गज को ।
उसी हाथ का अब असर देखना है ।।2।।

विदुर भीलनी के जा घर तुमने देखे ।
तो हमको तुम्हारा भी घर देखना है ।।3।।

टपकते हैं दृग 'बिन्दु' तुमसे ये कहकर ।
तुम्हें अपनी उल्फत में तर देखना है ।।4।।


एक अर्ज मेरी सुनलो दिलदार ए कन्हैया ...


एक अर्ज मेरी सुनलो दिलदार ए कन्हैया ।
करदो अधम की नैया, भव पार ए कन्हैया ।।

अच्छा हूँ या बुरा हूँ, पर दास हूँ तुम्हारा ।
जीवन का मेरे तुम पर, है भार ए कन्हैया ।।1।।

तुम हो अधम जनों का, उद्धार करने वाले ।
मैं हूँ अधम जनों का, सरदार ए कन्हैया ।।2।।

करूणा निधान करूणा करनी पड़ेगी तुमको ।
वरना ये धाम होगा, बदनाम ए कन्हैया ।।3।।

ख्वाहिश ये है कि मुझसे दृग 'बिन्दु' रत्न लेकर ।
बदले में दे दो अपना, कुछ प्यार ए कन्हैया ।।4।।


जैसे सूरज की गर्मी से ... (शर्मा बंधु)


जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरूवर की छाया ।
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम ।।

भटका हुआ मेरा मन था कोई, मिल ना रहा था सहारा ।
लहरों से लड़ती हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा ।
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो किसी ने किनारा दिखाया ।।1।। ऐसा ही ....

शीतल बने आग चंदन के जैसी राघव कृपा हो जो तेरी ।
उजियाली पूनम की हो जायें रातें जो थी अमावस अंधेरी ।
युग युग से प्यासी मरूभूमि ने जैसे सावन का संदेस पाया ।।2।। ऐसा ही ....

जिस राह की मंजिल तेरा मिलन हो उस पर कदम मैं बढ़ाऊँ ।
फूलों में खा़रों में पतझड़ बहारों में मैं ना कभी डगमगाऊँ ।
पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे जी भरके अमृत पिलाया ।।3।। ऐसा ही ....


रास कुंजन में ठहरायो ...


रास कुंजन में ठहरायो ।
सखियॉं करें पुकार सॉंवरो अब तक नहीं आयो ।।

राधा सोच करे मन माहीं, कोई सौतन बिलमायो ।
ना जाणै कित गयो सॉंवरो, पतो नहीं पायो ।।1।।

इतनी देर में बजी बॉंसुरी, कुंजन हरसायो ।
डाल डाल और पात पात में श्याम नजर आयो ।।2।।

कोई ल्यायो झांझ मजीरा, कोई ढप ल्यायो ।
दे दे ताळी नाचै कान्हो, अति आनंद छायो ।।3।।

भगत आ गयो शरणै थारी, आ अरजी ल्यायो ।
भव सागर से पार करो थे कैंया बिसरायो ।।4।।


दांव सॉंवरे ने खेला मुस्कुराय के ...(पहाड़ी-दादरा)


ए री मैं अपने घर सौं निकसी, जहॉं नंद को खेल रह्यो चकडोरी ।
पीठ मोड़ के देखन लागी, हँस हँस श्याम कहे मो ते गोरी ।
वा दिन की प्रीत ऐसी जुड़ी री, पड़त नहीं गांठ ना टूटत डोरी ।।


दाव सॉंवरे ने खेला मुस्कुराय के, जादू डार गयो बॉंसुरी बजाय के ।
ले गयो चुराय के, मेरो दिल चुराय के, ले गयो चुराय के ।।

संग ना सहेली गली सांकरी में घिर गई ।
निकसी अकेली काहे मेरी मति फिर गई ।
लियो भार वा ने सामने से आय के ।
हुई भूल उनसे नज़रें मिलाय के ।।1।। ले गयो ....

सर्वस ही हो गए वो एक मुलाकात में ।
बरबस ही बिक गई मैं सॉंवरे के हाथ में ।
मन के मंदिर में उनको बिठाय के ।
जाने ना दूंगी उनको मैं पाय के ।।2।। ले गयो ....

जीत लिया उनको मैंने अपनी हार मान ली ।
प्रीत को निभाऊंगी मन में बात ठान ली ।
लोक लाज सारी यमुना बहाय के ।
मेरो यार है वो मन में से बसाय के ।।3।। ले गयो ....

में हूँ दासी राधिका की राधिका रमण मेरे ।
एक सांस भी न जाये, नाम लिये बिन तेरे ।
विनय मान लीजो अपनी बनाय के ।
मेरेा यार है रमण कहूँ गाय के ।।4।। ले गयो ....


बरसन लागी सावन बदरिया ...(श्रीदासी)


बरसन लागी सावन बदरिया ।
झूला झूलें आओ साँवरिया ।।

बरसे सावन, उपवन महके, लता पुष्प और पंछी चहके ।
मंद फुहारों में तन मन बहके, नेक तो भूलो सौतन मुरलिया ।।

कदम्ब पे हमने झूला डारो, बैठ हिंडोला मोहे निहारो ।
इतनो पियाजी काहे विचारो, अरज करे भोरी सी गुजरिया ।।

घनन घनन घन कर घन गरजैं, रिमझिम जैसे मोती बरसैं ।
'श्रीदासी' पिया दरसन करिजैं, भीग प्रेम रंग भई बावरिया ।।


सखी री मोहे लागे श्याम पियारे ...(श्रीदासी)


सखी री मोहे लागे श्याम पियारे ।
मोहिनी मूरत साँवरी सूरत, श्यामल नन्द दुलारे ।।

मोर मुकुट कस्तूरी टीको, अलक घने घुंघरारे ।
विद्रुम अधर सुघड़ नासिका, तिरछे नैन कजरारे ।।

मकराकृत कुण्डल श्रवणन में, रतन जडि़त उजियारे ।
चारू चन्द्र सी प्यारी चितवन, गोल कपोल रतनारे ।।

दीन दयाल हो दीनन के प्रभु, रसिकन पे रिझवारे ।
श्री स्वामिनि संग युगल विराजत, 'श्रीदासी' के वारे (प्यारे) ।।


ऐसो चटक मटक सो ठाकुर ...


ऐसो चटक मटक सो ठाकुर ।
तीनो लोकनहूँ में नांय ।।

तीन ठौर तैं टेढ़ौ दीखे, नट की सी चलगत यै सीखै ।
टेढ़े नैन चलावे तीखे,
सब देवन कौ देव, तौऊ या ब्रज मैं घेरै गाय ।।

ब्रह्मा मोह कियो पछतायो, दरसन कौं शिव बृज में आयौ ।
मान इंद्र को दूर भगायौ,
ऐसौ वैभव वारो, तौऊ या ब्रज में गारी खाय ।।

बड़े बड़े असुरन कूँ मार्यो, नाग कालिया पकड़ पछाड्यो ।
सात दिनां नख गिरवर धार्यो,
ऐसौ है बलि तौऊ, खेलत में ग्वालन पै पिट जाय ।।

रूप छबीलो है बृज सुन्दर, बिना बुलाए डोलै घर घर ।
प्रेमी बृज गोपिन को चाकर,
ऐसौ प्रेम बढ्यो, माखन की चोरी करबै जाय ।।


जब होवे सच्चा प्यार क्यूं ना मिले कन्हैया ...


जब होवे सच्चा प्यार, क्यूं ना मिले कन्हैया ।
जब मिले तार से तार, क्यूं ना मिले कन्हैया ।।

चंचल मन को तू समझा ले ।
हरि चरणों में प्रीति लगाले ।
और मन से तज अहंकार, क्यूं ना मिले कन्हैया ।।

वन में बैठी शबरी माई ।
राम नाम की लगन लगाई ।
किये दरसन अवधकुमार, क्यूं ना मिले कन्हैया ।।

पिता ने जब प्रल्हाद सताया ।
अपने प्रभु का ध्यान लगाया ।
नर सिंह लिया अवतार, क्यूं ना मिले कन्हैया ।।

दुर्योधन ने जाल बिछाया ।
अर्जुन शरण कृष्ण की आया ।
बने सारथी कृष्ण मुरार, क्यूं ना मिले कन्हैया ।।

जो तू भजन करे दिन राती ।
श्याम सुंदर बन जायें साथी ।
तू शरण तो आ इक बार, क्यूं ना मिले कन्हैया ।।


ना जाने कौन से गुण पर ... (बिन्दुजी)


ना जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही हरि भक्त कहते हैं, यही सब संत गाते हैं ।।

नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप दुर्योधन का ।
विदुर के घर पहुँचकर भोग छिलकों का लगाते हैं ।।

न आये मधुपुरी (मथुरा) से, गोपियों की दुख कथा सुनकर ।
द्रोपदी की दशा पर द्वारिका से दौड़े आते हैं ।।

ना रोये वन गमन में श्रीपिता की वेदनाओं पर ।
उठाकर गीध को निज गोद में ऑंसू बहाते हैं ।।

कठिनता से चरण धोकर, मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।
वो चरणोदक स्‍वयं केवट के घर जाकर लुटाते हैं ।।


यूँ अगर आप मोहन मुकर जायेंगे ... (बिन्दुजी)


यूँ अगर आप मोहन मुकर जायेंगे ।
तो भला हम से पापी किधर जायेंगे ।।

अब तरेंगे नहीं तो ये सच जानिये ।
आपका नाम बदनाम कर जायेंगे ।।

चाहते कुछ हो रिश्वत तो है क्या यहॉं ।
हॉं, गुनाहों से भण्डार भर जायेंगे ।।

थी जो नफरत तो घर में बिठाया ही क्यों ।
जाय सर, और के अब ना घर जायेंगे ।।

है यकीं 'बिन्दु' गर चश्मे तर से बहे ।
तो तुम्हें करके तर खुद भी तर जायेंगे ।।


जै जै जै श्री वृन्दावन ... (सलोनी सखी)


रंगीलो राधा वल्लभ लाल, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
विहरत संग लाडि़ली लाल, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।1।।
जमुना नील मणिन की माल, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
प्रेम सुरस बरष्त सब काल, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।2।।
सखिनु संग राजत जुगल किशोर, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
अद्भुत छ‍बी सांझ अरू भोर, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।3।।
आनन्द रंग को ओर न छोर, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
प्रेम की नदी बहे चहुँ ओर, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।4।।
दुर्लभ पिय प्यारी को धाम, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
चहुँ दिसि गूँजत राधा नाम, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।5।।
नैनन निरखिये स्यामा स्याम, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
मनुवा लेत परम विश्राम, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।6।।
धनि धनि श्री किनका परसाद, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
पाये मिटिहैं विषै विषाद, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।7।।
सभै सुख एक सीथ के स्वाद, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
सर्वस मान्यो हित प्रभु पाद, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।8।।
धनि धनि ब्रजवासी बड़भाग, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
जिनके हिये सहज अनुराग, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।9।।
लेत सुख रास हिंडोला फाग, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
गावत जीवत जुगल सुहाग, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।10।।
छबीली वृंदावन की बेलि, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
छांह तरै करैं जुगल रस केलि, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।11।।
मंद मुसकात अंस भुज मेलि, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
रसिक दें कोटि मुक्ति पग पेलि, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।12।।
पावन वृन्दावन की धूरि, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
परस किये पाप ताप सब दूरि, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।13।।
रसिक जननि की जीवन मूरि, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
हित कौ राज सदा भरपूर, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।14।।
रसीली मनमोहन की वेणु, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
कौन हरिवंशी सम रस दैन, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।15।।
अगोचर रस विहार दरसैन, जै जै जै श्री वृन्दावन ।
''सलोनी'' पायो निकुंजनि ऐन, जै जै जै श्री वृन्दावन ।।16।।


मेरी लाडो का नाम श्रीराधा ...


मेरी लाडो का नाम श्रीराधा ।
मेरी प्यारी का नाम श्रीराधा ।।

श्रीराधा श्रीराधा, श्रीराधा श्रीराधा ।
मेरी लाडो का नाम श्रीराधा ।।

भोरी भारी का नाम, श्रीराधा ।
सुकुमारी का नाम, श्रीराधा ।
उजियारी का नाम, श्रीराधा ।
मतवारी का नाम, श्रीराधा ।

बृज रानी का नाम, श्रीराधा ।
महारानी का नाम, श्रीराधा ।
पटरानी का नाम, श्रीराधा ।
ठकुरानी का नाम, श्रीराधा ।


ओ मैया तैनें का ठानी मन में ... (रविन्द्र जैन)


ओ मैया तैंने का ठानी मन में ।
राम सिया भेज दये री वन में ।।

जदपि भरत तेरो ही जायो, तेरी करनी देख लजायो ।
अपनो पद तैनें आप गंवायो, भरत की नजरन में ।।

महल छोड़ वहॉं नहीं रे मढ़ैया, सिया सुकुमारी संग दोऊ भैया ।
काहू वृक्ष तर भीजत होंगे, तीनों मेहन में ।।

कौशल्या की छिन गई वाणी, रो ना सकी उर्मिला दिवानी ।
कैकयी तू बस एक ही रानी, रह गई महलन में ।।


कब होगा तेरा दीदार ... (चित्र विचित्र जी)


कब होगा तेरा दीदार, कुछ तो बोलो सरकार
श्याम कब आओगे ।।

किस बात पे रूठे हो, आकर तो बताओ सही
तेरे बिन मनमोहन, दिल मेरा ये लगता नहीं
सूना तुम बिन संसार, रहीं अंखिंयाँ बाट निहार
श्याम कब आओगे ।।

आई जीवन की शाम, तुम आये नहीं घनश्याम
पलपल घबराऊँ मैं, कैसेट रखूँ दिल को थाम
बिखरा मेरा श्रृंगार, मेरा बिलख रहा है प्यार
श्याम कब आओगे ।।

मेरे दर्द भरे ये गीत, तू सुन ले मन के मीत
अब और ना तड़पाओ, मैं हारा तुम गए जीत
ओ चित्र विचित्र के यार, करने हमपे उपकार
श्याम कब आओगे ।।


वारी जाऊँ रे बलिहारी जाऊँ रे ...


सतगरू म्हारी आतमा, मैं संतन की देह ।
रोम रोम मैं रम रया, ज्‍यूं बादळ मैं मेह ।।


वारी जाऊँ रे बलहारी जाऊँ रे ।
म्हारा सतगरू औंगण आया, मैं वारी जाऊँ रे ।।

सतगरू औंगण आया, मैं गंगा गोमती न्हाया रे
म्हारी निरमळ हो गई काया, मैं वारी जाऊँ रे ।।

सतगरू दरसण दीना, म्हारा भाग उदय कर दीना रे
म्हारा करम भरम सब छीना रे, मैं वारी जाऊँ रे ।।

सब सखियॉं मिल हालो, केसर तिलक लगा रे
म्हारा सतगरू लेओ बधाए, मैं वारी जाऊँ रे ।।

सतसंग बण गयो भारी, थे गाओ मंगळाचारी रे
म्हारी खुली हिरदै की बारी रे, मैं वारी जाऊँ रे ।।

दास नारायण जस गावे, चरणां मैं सीस निवावे ओ
म्हारो बेड़ो पार लगाओ रे, मैं वारी जाऊँ रे ।।


छीन लिया मेरा भोला सा मन ...


छीन लिया मेरा भोला सा मन
राधा रमण प्यारो राधा रमण ।।

गोकुल का ग्वाला, ब्रज का बसैया
सखियों का मोहन, मॉं का कन्हैया
भक्तों का जीवन, निर्धन का धन
राधा रमण प्यारो राधा रमण ।।

यमुना के जल में, वही श्याम खेले
लहरों में उछले, और मारे घनेरे
बिछुड़न कभी होवे मोहन मिलन
राधा रमण प्यारो राधा रमण ।।

जा कर के देखा, मंदिर के अंदर
बैठा वहीं बाबा वो श्याम सुन्दर
कुण्‍डल हलन और तिरछी चलन
राधा रमण प्यारो राधा रमण ।।


सॉंवरी सूरत पे मेरा दिल दिवाना ...


सॉंवरी सूरत पे मेरा दिल दिवाना हो गया
दिल दिवाना हो गया, मेरा दिल दिवाना हो गया ।।

एक तो तेरे नैन कातिल, दूसरा काजल लगा
तीसरा नजरें मिलाना, दिल दिवाना हो गया ।।

एक तो तेरे हाथ कोमल, दूसरा मेंहदी लगी
तीसरा मुरली बजाना, दिल दिवाना हो गया ।।

एक तो तेरे होंठ पतले, दूसरा लाली लगी
तीसरा तेरा मुस्कुराना, दिल दिवाना हो गया ।।

एक तो तेरे चरण नाजुक, दूसरा लाली लगे
तीसरा घुंघरू बजाना, दिल दिवाना हो गया ।।

एक तो तेरे भोग छप्पन, दूसरा माखन मिला
तीसरा खिचड़ी का खाना, दिल दिवाना हो गया ।।

एक तो तेरे साथ राधा, दूसरा रूकमणि खड़ीं
तीसरा मीरां का आना, दिल दिवाना हो गया ।।